मौत के मलबे में ज़िंदा उम्मीद: विश्वास कुमार रमेश की असाधारण कहानी
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मौत के मलबे में ज़िंदा उम्मीद: विश्वास कुमार रमेश की असाधारण कहानी

12 जून 2025 की सुबह, हर किसी के लिए एक सामान्य दिन थी — लेकिन एयर इंडिया की फ्लाइट AI-171 में बैठे 242 लोगों के लिए यह आखिरी बन गई। अहमदाबाद से लंदन जा रही इस फ्लाइट का कुछ ही मिनटों में संपर्क टूट गया और फिर खबर आई — विमान दुर्घटनाग्रस्त हो गया। 241 जानें इस हादसे में खत्म हो गईं। पर एक नाम ऐसा भी था जिसने मौत को मात दी — विश्वास कुमार रमेश


कौन हैं विश्वास कुमार रमेश?

विश्वास कुमार रमेश, 40 वर्षीय ब्रिटिश नागरिक हैं जिनकी जड़ें भारत में हैं। वे एक आईटी विशेषज्ञ हैं और कुछ दिनों के लिए अपनी मां से मिलने भारत आए थे। 12 जून को वे वापस लंदन लौट रहे थे, लेकिन शायद किस्मत ने उनके लिए कुछ और ही तय कर रखा था।

वे फ्लाइट में सीट नंबर 11A पर बैठे थे — एक आम सफर की शुरुआत, जो कुछ ही पलों में एक दर्दनाक इतिहास बन गई।

क्या हुआ उस दिन?

जैसा कि विश्वास ने मीडिया से साझा किया —

“मैंने एक झटका महसूस किया। विमान अचानक नीचे गिरने लगा। धुंधलापन, एक तेज़ धमाका, और फिर सन्नाटा… जब मुझे होश आया, मैं मलबे में दबा हुआ था, चारों तरफ आग थी।”

वहां से उन्होंने खुद को खींचकर बाहर निकाला। चेहरे और पैरों पर गहरी चोटें थीं, लेकिन वे होश में थे और खुद चल पा रहे थे — यह अपने आप में चमत्कार से कम नहीं।

कैसे बच पाए सिर्फ वही?

विशेषज्ञ बताते हैं कि विमान के जिस हिस्से में वह बैठे थे, वह इंजन और फ्यूल टैंक से थोड़ा दूर था। संभव है कि वहीं कम आग लगी और टक्कर का असर थोड़ा कम रहा।
उनका सीट बेल्ट बांधना और मानसिक सतर्कता शायद उनकी ज़िंदगी बचाने वाले फैक्टर रहे।

NDRF की टीम ने जब उन्हें ज़िंदा पाया, तो पूरे मिशन में एक पल को जैसे आशा की किरण फूट पड़ी।

भावनात्मक असर

“जब मुझे बताया गया कि मैं इकलौता बचा हूं, तो समझ नहीं पाया कि ये राहत है या सजा,” — विश्वास

वो एक ऐसे हादसे से निकले हैं जिसमें एक सेकेंड में पूरी दुनिया उजड़ गई। उनके ज़हन में आज भी उस सुबह की चीखें गूंजती हैं।

सरकार और समाज की प्रतिक्रिया

इस हादसे की गंभीरता को देखते हुए भारत और ब्रिटेन दोनों सरकारें सक्रिय हैं। विश्वास को विशेष सुरक्षा और काउंसलिंग दी जा रही है।
उन्हें इस हादसे की जांच में मुख्य गवाह माना गया है। एयर इंडिया और DGCA, दोनों ने तकनीकी और मानव त्रुटियों की विस्तृत समीक्षा शुरू कर दी है।

अब आगे क्या?

विश्वास कुमार अब चुप नहीं बैठना चाहते। उन्होंने यह साफ किया कि वे हादसे पर आधारित एक किताब या डॉक्युमेंट्री बनाने पर विचार कर रहे हैं, जिससे पीड़ितों को न्याय और सम्मान मिले।

“ये सिर्फ मेरा अनुभव नहीं है, ये उन 241 लोगों की कहानी है, जो अब अपनी बात नहीं कह सकते,” — विश्वास

निष्कर्ष

इस विमान हादसे ने न केवल 241 परिवारों को उजाड़ा, बल्कि भारत की एविएशन इंडस्ट्री पर भी सवाल खड़े किए। पर इस अंधकार में भी एक नाम ऐसा रहा जिसने आशा की लौ जलाए रखी — विश्वास कुमार रमेश

उनकी कहानी हमें याद दिलाती है कि कभी-कभी ज़िंदगी खुद को बचाने के लिए इंसान से लड़ना सिखा देती है। वे सिर्फ एक बचे हुए यात्री नहीं हैं — वे उन तमाम खोए चेहरों की आवाज़ हैं, जिन्हें इस हादसे में खो दिया गया।


आपकी राय क्या है?

क्या आपको विश्वास कुमार की यह जीवंत कहानी प्रेरणादायक लगी?
क्या आपको लगता है कि इस घटना से एविएशन इंडस्ट्री को कुछ ठोस सबक लेना चाहिए?

नीचे कमेंट में अपने विचार ज़रूर साझा करें।
आपकी एक प्रतिक्रिया उन सैकड़ों लोगों की भावनाओं को स्वर देने में मदद कर सकती है, जिनकी आवाज़ इस हादसे में हमेशा के लिए थम गई।

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